श्रेणियाँ संस्मरण

सरंक्षिका देवदूती

मिली पिंटों जब बहुत छोटी थी तभी उनकी माता की मृत्यु हो गई। उनका बचपन बीमारी और उदासी में कटा। एक श्रद्धालु ईसाई परिवार में जन्म होने के कारण उन्हें सरंक्षक देवदूतों और देवदूतियों में दृढ़ विश्वास था। उनको हमेशा अनुभूति होती थी कि एक दिव्य देवदूती उनकी रक्षा कर रही है। उन्हें इस देवदूती का दर्शन भी होता था।

समय बीतता गया। मिली युवती हो गयी। इसी बीच उनके भाई उदार आश्रमवासी हो गए। मिली उनसे मिलने पांडिचेरी आईं। श्रीमाँ के प्रथम दर्शन पर ही मिली पहचान गई कि वे ही उनकी सरंक्षिका देवदूती थी जिन्होने इतने वर्षों तक उनकी रक्षा की।

(यह कथा मुझे सुश्री गौरी पिंटों ने सुनाई थी )

संदर्भ : श्रीअरविंद एवं श्रीमाँ की दिव्य लीला 

शेयर कीजिये

नए आलेख

प्रार्थना

(जो लोग भगवान की  सेवा  करना चाहते हैं  उनके लिये एक प्रार्थना ) तेरी जय…

% दिन पहले

आत्मा के प्रवेश द्वार

यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…

% दिन पहले

शारीरिक अव्यवस्था का सामना

जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…

% दिन पहले

दो तरह के वातावरण

आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…

% दिन पहले

जब मनुष्य अपने-आपको जान लेगा

.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…

% दिन पहले

दृढ़ और निरन्तर संकल्प पर्याप्त है

अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…

% दिन पहले