समस्त धन-सम्पदा भगवान् की है, भगवान् उसे जीवित प्राणियों को उधार देते है और स्वभावत: उसे उन्हें भगवान् के पास लौटा देना चाहिये।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग – १)
भगवान को अभिव्यक्त करने वाली किसी भी चीज को मान्यता देने में लोग इतने अनिच्छुक…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिसमें…
मनुष्य-जीवन के अधिकांश भाग की कृत्रिमता ही उसकी अनेक बुद्धमूल व्याधियों का कारण है, वह…
श्रीअरविंद हमसे कहते हैं कि सभी परिस्थितियों में प्रेम को विकीरत करते रहना ही देवत्व…