यदि सत्ता का कोई अंग समर्पण करे और कोई दूसरा अंग जहाँ-का-तहाँ अड़ा रह जाये, अपने ही रास्ते पर चलता चलें या अपनी शर्तों को सामने रखे तो यह समझ लो कि जब-जब ऐसा होगा तब-तब तुम आप ही उस भगवती प्रसाद-शक्ति को अपने पास से दूर हटा दोगे ।
संदर्भ : माताजी के विषय में
श्रीअरविंद हमसे कहते हैं कि सभी परिस्थितियों में प्रेम को विकीरत करते रहना ही देवत्व…
... सामान्य व्यक्ति में ऐसी बहुत-से चीज़ें रहती हैं, जिनके बारे में वह सचेतन नहीं…
भगवान मुझसे क्या चाहते हैं ? वे चाहते हैं कि पहले तुम अपने-आपको पा लो,…
सूर्यालोकित पथ का ऐसे लोग ही अनुसरण कर सकते हैं जिनमें समर्पण की साधना करने…