भगवान ही अधिपति और प्रभु हैं – आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शांत साक्षी बनी रहती है और सभी वस्तुओं का समर्थन करती है – यह निश्चल पक्ष है। एक गयात्मक पक्ष भी है जिसके द्वारा भगवान कार्य करते हैं- उनके पीछे श्रीमाँ हैं। तुम्हें इसे अनदेखा नहीं करना चाहिये कि श्रीमाँ के माध्यम से ही सभी वस्तुएं उपलब्ध होती हैं।
संदर्भ : श्रीमाँ के विषय में
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…