सन्यासी होना अनिवार्य नहीं है – यदि कोई ऊपरी चेतना में रहने के बजाय आन्तरिक चेतना में रहना सीख जाये, अपनी अन्तरात्मा या सच्चे व्यक्तित्व को ढूंढ सके जो कि उपरितलीय मन और प्राण की शक्तियों से आच्छन्न है और अपनी सत्ता को अतिचेतन सद्व्स्तु की ओर उद्घाटित कर सके तो यह पर्याप्त है । परंतु ऐसा करने में कोई तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक कि वह अपने प्रयास में पूरी तरह से सच्चा और एकमुखी न हो।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र
यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…
जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…
.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…
अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…