दूसरों के साथ रहते हुए तुम्हें हमेशा एक दिव्य उदाहरण होना चाहिये। तुम्हें एक ऐसा अवसर बनना चाहिये जो उन्हें भागवत जीवन को समझने
और उसके मार्ग पर चलने के लिए दिया गया है। इससे बढ़ कर कुछ नहीं; तुम्हारे अन्दर यह चाह भी नहीं होनी चाहिये कि वे प्रगति करें, क्योंकि यह
भी तुम्हारी मनमानी ही होगी।
जब तक तुम निर्णायक रूप से अन्दर के दिव्यत्व के साथ एक नहीं हो जाते तब तक बाहर के साथ सम्बन्धों के बारे में सबसे अच्छा तरीक़ा यह है कि जिन्हें इस एकता का अनुभव है उनकी एकमत से दी हुई सलाह के अनुसार चलो।
हमेशा सतत शुभेच्छा की स्थिति में रहना-इसे अपना नियम बना लो कि किसी चीज़ से परेशान नहीं होना और किसी की परेशानी का कारण
नहीं बनना और, जहाँ तक हो सके, किसी को कष्ट नहीं पहुँचाना।
संदर्भ : पहले की बातें
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…