दूसरों के साथ रहते हुए तुम्हें हमेशा एक दिव्य उदाहरण होना चाहिये। तुम्हें एक ऐसा अवसर बनना चाहिये जो उन्हें भागवत जीवन को समझने
और उसके मार्ग पर चलने के लिए दिया गया है। इससे बढ़ कर कुछ नहीं; तुम्हारे अन्दर यह चाह भी नहीं होनी चाहिये कि वे प्रगति करें, क्योंकि यह
भी तुम्हारी मनमानी ही होगी।
जब तक तुम निर्णायक रूप से अन्दर के दिव्यत्व के साथ एक नहीं हो जाते तब तक बाहर के साथ सम्बन्धों के बारे में सबसे अच्छा तरीक़ा यह है कि जिन्हें इस एकता का अनुभव है उनकी एकमत से दी हुई सलाह के अनुसार चलो।
हमेशा सतत शुभेच्छा की स्थिति में रहना-इसे अपना नियम बना लो कि किसी चीज़ से परेशान नहीं होना और किसी की परेशानी का कारण
नहीं बनना और, जहाँ तक हो सके, किसी को कष्ट नहीं पहुँचाना।
संदर्भ : पहले की बातें
तुम जिस चरित्र-दोष की बात कहते हो वह सर्वसामान्य है और मानव प्रकृति में प्रायः सर्वत्र…
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…