यह पृथ्वी तब तक सजीव और स्थायी शांति का उपभोग नहीं कर सकतीं जब तक मनुष्य अपने अन्तर्राष्ट्रीय व्यवहारों में भी पूर्ण रूप से सत्यपरायण होना नहीं सीख लेते।
हे प्रभो! हम इसी पूर्ण सत्यपरायणता के लिए अभिप्सा करते हैं।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-३)
आत्म-विश्वास के बिना तुम कभी कुछ नहीं कर सकते ... क्योंकि साधना के प्रारम्भिक बेचैनी-भरे…
जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…
‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…