सच्चे आध्यात्मिक जीवन का आरम्भ


श्रीअरविंद आश्रम की श्रीमाँ
श्रीअरविंद आश्रम की श्रीमाँ

साधारण जीवन में लाखों में से एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं होता जिसका अपनी चैत्य चेतना के साथ सचेतन सम्पर्क हो, भण-भर के लिए भी। चैत्य सत्ता अन्दर से कार्य कर सकती है, लेकिन बाहरी सत्ता के लिए वह इतने अदृश्य और अचेतन रूप में कार्य करती है मानों उसका अस्तित्व ही न हो। और अधिकतर लोगों में, बहुत अधिक लोगों में, करीब-करीब सभी में, वह ऐसी होती है मानों वह सो रही हो, बिलकुल भी सक्रिय नहीं होती, एक तरह की निष्क्रियता में रहती है।

केवल साधना और बहुत ही अटल प्रयास के द्वारा व्यक्ति अपनी चैत्य सत्ता के साथ एक सचेतन सम्पर्क बनाने में सफल होता है। स्वाभाविक रूप से सम्भव है कि कुछ असाधारण मनुष्य हों लेकिन यह चीज सचमुच असाधारण है, और ऐसे लोग इतने कम होते हैं कि उनको गिन सकते हैं -जहां चैत्य सत्ता पूर्ण विकसित हो, स्वतन्त्र और स्वराट् सत्ता हो, जिसने अपना कार्य करने के लिए किसी मानव शरीर के अन्दर पृथ्वी पर वापिस आने का चयन किया हो। और ऐसी अवस्था में, यदि व्यक्ति सचेतन रूप से साधना न भी करे, यह सम्भव है कि चैत्य सत्ता इतनी अधिक शक्तिशाली हो कि वह न्यूनाधिक रूप से सचेतन सम्पर्क बना दे। लेकिन ऐसे व्यक्ति कहना चाहिये, असाधारण और अद्वितीय होते हैं जो इस नियम की परिपुष्टि करते हैं।

अपनी चैत्य सत्ता के प्रति सचेतन होने के लिए करीब-करीब, करीब-करीब सभी मनुष्यों के लिए, एक बहुत, बहुत ही सतत प्रयास की आवश्यकता होती है। साधारणतः ऐसा माना जाता है कि अगर मनुष्य उसे तीस साल में कर ले तो वह बहुत भाग्यशाली होता है-मैं कह रही हूं, तीस साल की सतत साधना। यह भी हो सकता है कि वह ज्यादा तेज हो। लेकिन यह इतना विरल होता है कि मनुष्य झट बोल उठता है : “यह कोई साधारण मानव नहीं है।” यह ऐसे लोगों की बात है जिन्हें न्यूनाधिक रूप से भागवत सत्ताएं मान लिया गया है, और ये व्यक्ति बहुत बड़े योगी, बहुत बड़े सन्त थे।

संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५५


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