सच्ची वीरता


श्रीअरविंद आश्रम की श्रीमाँ

तुम पानी में गिर पड़ते हो। वह विपुल जलराशि तुम्हें भयभीत नहीं करती। तुम हाथ-पांव मारते हो, साथ ही तैरना सिखाने वाले अपने शिक्षक को धन्यवाद देते हो। तुम लहरों पर काबू पा लेते हो और बच निकलते हो। तुम बहादुर हो।

तुम सो रहे थे। “आग-आग” की आवाज़ ने तुम्हें चौंका दिया। तुम पलंग से कूद पड़ते हो; सामने तुम्हें अग्नि की लाल-लाल लपटें दिखायी देती हैं। तुम उस घातक भय से त्रस्त नहीं होते। धुंए, चिनगारियों और लपटों के बीच में से होकर तुम भाग निकलते हो और अपने-आपको बचा लेते हो। यह साहस का काम है।

बहुत दिन हुए में इंग्लैण्ड में बच्चों का एक स्कूल देखने गयी थी। वहाँ तीन से सात वर्ष तक के छात्र थे। उनमें लड़के-लड़कियाँ दोनों थे। वे सब सुनने, चित्रकारी करने, कहानी सुनने-सुनाने, गाने आदि में लगे हुए थे। उनके अध्यापक ने मुझसे कहा : “हम अब अग्नि से बचने का अभ्यास करेंगे। सचमुच आग नहीं लगी है, पर बच्चों को यह सिखाया जा रहा है कि किस प्रकार ख़तरे का संकेत पाते ही अटपट उठ कर भाग जाना चाहिये।”

उन्होंने सीटी बजायी। उसी दम बच्चों ने अपनी पुस्तकें, पेंसिलें और बुनने की सलाइयाँ छोड़ दी और उठ कर खड़े हो गये। दूसरे संकेत पर सब, एक  के पीछे एक, बाहर खुले में आ गये। कुछ ही क्षणों में कक्षा खाली हो गयी। उन छोटे बच्चों ने आग के खतरे का सामना करना और साहसी बनना सीखा था। तुम किसकी रक्षा के लिए तेरे थे? अपनी रक्षा के लिए।

तुम किसको बचाने के लिए आग की लपटों में से गजरे थे? अपने-आपको बचाने के लिए। बच्चों ने किसके बचाव के लिए आग के भय का सामना किया था? अपने बचाव के लिए।

प्रत्येक अवस्था में साहस का प्रदर्शन अपनी रक्षा के लिए किया गया था। क्या यह अनुचित था? बिलकुल नहीं। अपने जीवन की रक्षा करना और उसे बचाने के लिए वीरता का होना सर्वथा उचित है। परन्तु एक वीरता इससे भी बड़ी है: वह वीरता, जो दूसरों की रक्षा के लिए काम में
लायी जाती है।

संदर्भ : पहले की बातें 


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