साधक को क्या होना चाहिये इसके बारे में मैं तुम्हारे भावों की कदर करती हूँ और उस दृष्टिकोण से, तुम जो कहते हो वह बिलकुल सच है। लेकिन यह भली -भांति जानी हुई बात है कि आश्रम में केवल साधक ही नहीं हैं। आश्रम जीवन का एक लघु आकार है जिसमें योगभ्यास करने वाले संख्या में कम हैं, और अगर मैं यहाँ सिर्फ उन्हीं को रखूँ जो अपनी साधना में बिलकुल सच्चे और निष्कपट हैं, तो वस्तुतः, बहुत कम ही रह जायेंगे।
श्रीअरविंद हमेशा हमें इस तथ्य कि याद दिलाते हैं कि भगवान हर जगह हैं और हर चीज़ में हैं, और हम सभी से सच्ची करुणा का अभ्यास करने को कहते हैं। यह बात बड़े ही सुन्दर ढंग से उस सूत्र में कही गयी है जिस पर मैं अभी-अभी टिप्पणी कर रही थी : “अपने – आपको निर्दय होकर जाँचो, तब तुम औरों के प्रति अधिक उदार और दयालु होओगे। ”
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-१)
तुम जिस चरित्र-दोष की बात कहते हो वह सर्वसामान्य है और मानव प्रकृति में प्रायः सर्वत्र…
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अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
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