वस्तुतः, तुम्हें केवल उन्हीं व्यक्तियों को अपने मित्र के रूपमें चुनना चाहिये जो तुमसे अधिक बुद्धिमान् हों, जिनकी संगति तुम्हें ऊंचा उठाये, अपने पर विजय पाने, प्रगति करने, और भी अधिक अच्छा करने और स्पष्टतर रूप-से देखने में सहायता करे । और अंत में सबसे अच्छा मित्र जो तुम्हें मिल सकता है, क्या वह भगवान् ही नहीं हैं, जिनके सामने तुम सब कुछ कह सकते, सब कुछ प्रकट कर सकते हो? क्योंकि निश्चय ही, सर्व करुणा, सर्व शक्ति का स्रोत वहीं है, वह प्रत्येक भूलको, यदि उसे दोहराया न जाय तो, मिटा सकती और सच्ची चरितार्थता का मार्ग खोल सकती है। ये वे ही है जो सब कुछ समझ सकते और सब घावों को भर सकते हैं तथा पथ-पर सदा सहायता कर सकते हैं, तुम हिम्मत न हार जाओ, लड़खड़ा न पड़ो, गिर न जाओ बल्कि लक्ष्यकी ओर सीधे चलते जाओ इसमें तुम्हारी सहायता कर सकते हैं। वे ही सच्चे मित्र हैं, अच्छे और बुरे दिनोंके साथी हैं। वे समझ सकते और घावोंको भर सकते हैं और जब तुम्हें उनकी जरूरत होती है, वे सदा उपस्थित हो जाते हैं। जब तुम उन्हें सच्चाई से पुकारते हो तो वे सदा पथ-प्रदर्शन करने और सहारा देने— और सबसे सच्चे रूपमें प्रेम करने — के लिये आ उपस्थित होते हैं।
सन्दर्भ : प्रश्न और उत्तर (१९५७-१९५८)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…