सच्चाई का अर्थ है, अपनी सत्ता की सभी गतिविधियों को उस उच्चतम चेतना तथा उच्चतम सिद्धि तक उठाना जिन्हें पहले से ही प्राप्त कर लिया गया है।
सच्चाई हर एक से यही माँग करती है कि प्रत्येक अपनी समस्त सत्ता को – अपने सभी भागों तथा गतिविधियों के साथ – उस केंद्रीय भागवत इच्छा-शक्ति के साथ एकता तथा सामंजस्य में ढाले।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
तुम जिस चरित्र-दोष की बात कहते हो वह सर्वसामान्य है और मानव प्रकृति में प्रायः सर्वत्र…
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…