सच्चाई का अर्थ है, अपनी सत्ता की सभी गतिविधियों को उस उच्चतम चेतना तथा उच्चतम सिद्धि तक उठाना जिन्हें पहले से ही प्राप्त कर लिया गया है।
सच्चाई हर एक से यही माँग करती है कि प्रत्येक अपनी समस्त सत्ता को – अपने सभी भागों तथा गतिविधियों के साथ – उस केंद्रीय भागवत इच्छा-शक्ति के साथ एकता तथा सामंजस्य में ढाले।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…
पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…