…. १८ अक्तूबर… श्री रामकृष्ण से तीसरा और अन्तिम सन्देश मिला। पहला सन्देश बड़ौदा में मिला था, “अरबिन्दो, मन्दिर करो, मन्दिर करो,” तथा अपने को निगलने की सर्प-प्रवृत्ति का दृष्टान्त। दूसरा, पॉण्डिचेरी आने के तुरन्त बाद शंकर चेट्टी के घर में दिया गया। इनके शब्द मैं भूल गया किन्तु यह निम्न सत्ता में उच्चतर सत्ता के निर्माण का निर्देशन था। साथ ही उन्होंने वचन दिया कि साधना की पूर्णता के निकट आने पर वे पुनः एक बार बोलेंगे। यह तीसरा सन्देश है। (१८ अक्तूबर १९१२)
“कर्म का पूर्ण संन्यास करो।
विचार का पूर्ण संन्यास करो।
भावना का पूर्ण संन्यास करो।
यह मेरा अन्तिम कथन है।”
संदर्भ : ५ दिसम्बर १९१२ की डायरी-प्रविष्टि : (रिकॉर्ड ऑफ़ योग)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
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आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…