जब तुम अपने हृदय और विचार में मेरे ओर श्रीअरविन्द के बीच कोई भेद न करोगे, जब अनिवार्य रूप से श्रीअरविन्द के बारे में सोचना मेरे बारे में सोचना हो ओर मेरे बारे में सोचने का अर्थ हो श्रीअरविन्द के बारे में सोचना, जब एक को देखने का अनिवार्य अर्थ हो दूसरे को उसी एक ही अछिद्र व्यक्ति के रूप में देखना, तब तुम यह जान लोग कि तुम अतिमानसिक शक्ति और चेतना के प्रति खुलना शुरू कर रहे हो ।
सन्दर्भ : माताजी के वचन (भाग – १)
जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…
‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…
सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…