तुम माँ के बच्चे हो और माँ का अपने बच्चों के प्रति प्रेम असीम होता है, और वे उनके स्वभाव के दोषों को बड़े धीरज के साथ सहती रहती हैं। श्रीमाँ का सच्चा बालक बनने की कोशिश करो; वह बच्चा तुम्हारें अंदर ही है,लेकिन तुम्हारा बाहरी मन छोटी-छोटी, तुच्छ चीजों में इतना रमा रहता है, बहुधा बात का इतना उग्र बतंगड़ बना देता है कि तुम झांक कर अपने अन्दर देखते ही नहीं ! तुम्हें श्रीमाँ को न केवल सपने में देखना चाहिये बल्कि सारे समय उन्हें अपने अन्दर देखना और अनुभव करना चाहिये। तब तुम अपने-आप पर संयम पाने और स्वयं को बदलने में आसानी का अनुभव करोगे – क्योंकि अंतर में विद्यमान ‘वे’ तुम्हारे लिए इसे करने में तुम्हारी सहायता करेंगी।
संदर्भ : माताजी के विषय में
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…