तुम्हारे अंदर का यह संघर्ष (श्रीक़ृष्ण की भक्ति और माताजी के दिव्यत्व के बोध के बीच का संघर्ष) एकदम अनावश्यक है क्योंकि ये दोनों चीज़ें एक हैं और पूर्णरूप से एक साथ चल सकती हैं। श्रीकृष्ण ही तुम्हें माताजी के पास ले आये है और माताजी की पूजा करके ही तुम उनको (श्रीकृष्ण को ) पा सकते हो। वह स्वयं इस आश्रम में हैं और यहाँ जो काम हो रहा है, यह उन्ही का हैं ।
संदर्भ : माताजी के विषय में
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…
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पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…