मैं हमेशा यह सलाह देती हूं कि एक बार में थोड़ा-सा पढ़ो, मन को जितना शांत रख सकते हो रखो, समझने की कोशिश न करो, दिमाग को जहां तक हो सके मौन रखो, और जो तुम पढ़ रहे हो उसमें जो शक्ति है उसे अपने अंदर गहराई में प्रवेश करने दो। शांत-स्थिरता और नीरवता में ग्रहण की गयी यह शक्ति अपनी ज्योति का काम करेगी और, अगर जरूरत हुई तो, मस्तिष्क में इसे समझने के लिये आवश्यक कोषाणु पैदा करेगी। इस तरह, जब तुम उसी चीज को कुछ महीनों के बाद दोबारा पढ़ते हो तो तुम्हें लगता है कि उसमें व्यक्त किया गया विचार बहुत ज्यादा स्पष्ट और निकट, और कभी-कभी बहुत परिचित हो गया है।
सन्दर्भ : शिक्षा के ऊपर
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…
पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…