तुम्हारी मुख्य भूल यह थी कि तुमने श्रीअरविन्द की शिक्षा को आध्यात्मिक शिक्षाओं में से एक मान लिया- और यहां होने वाले कार्य को भागवत कार्यों के बहुत-से पहलुओं में से एक माना।
इसने तुम्हारी आधारभूत स्थिति को मिथ्या बना दिया और यही सभी कठिनाइयों और गड़बड़ों का कारण है।
अगर तुम्हारे मन और तुम्हारी वृत्ति में यह भूल ठीक कर दी जाये तो दूसरी सब कठिनाइयां आसानी से गायब हो जायेंगी। तुम्हें यह समझ लेना चाहिये कि विश्व के इतिहास में श्रीअरविन्द जिस
चीज के प्रतिनिधि हैं, वह कोई शिक्षा नहीं है, कोई अन्तःप्रकाश भी नहीं है; यह सीधा परम प्रभु से आया हुआ निर्णायक कार्य है।
और मैं बस उस कार्य को पूरा करने की कोशिश कर रही हूं।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-१)
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
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मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…