श्रीअरविंद ने अपने शरीर के बारे में जो निर्णय किया उसके लिए बहुत हद तक धरती और मनुष्यों में ग्रहणशीलता का अभाव जिम्मेदार है । लेकिन एक चीज़ निश्चित है : भौतिक स्तर पर जो कुछ हुआ है उसका असर किसी तरह से भी उनकी शिक्षा के सत्य पर नहीं पड़ता। उन्होने जो कुछ कहा है वह सब पूरी तरह सत्य है और सत्य ही बना हुआ है । समय और घटनाक्रम इसे पर्याप्त रूप में सिद्ध करेंगे ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-१)
तुम जिस चरित्र-दोष की बात कहते हो वह सर्वसामान्य है और मानव प्रकृति में प्रायः सर्वत्र…
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…