श्रीअरविंद तथा श्रीमाँ के प्रभाव को ग्रहण करने के लिए श्रद्धा के साथ-साथ आवश्यकता है बस आध्यात्मिक पथ का अनुसरण करने के लिए पूर्ण सच्चाई और प्रभाव के प्रति खुलने के लिए संकल्प तथा सामर्थ्य की; लेकिन समान्यतः यह सामर्थ्य सच्चाई तथा श्रद्धा के परिणाम-स्वरूप आता है ।
आश्रम के बाहर रह कर भी योग का अनुसरण करना पूरी तरह सम्भव है। उत्तर तथा दक्षिण भारत में, दोनों जगह, ऐसे बहुत हैं जो यह करते हैं ।
संदर्भ : माताजी के विषय में
जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…
‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…
सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…