श्रीअरविंद और गोविंद

सांसारिक जीवन का परित्याग करने से पहले साधू बनमालीदास बिहार में जज थे। बाद में उन्होने नर्मदा के तट पर एक छोटा-सा आश्रम बना लिया और साधनालीन हो गए। साधना के दौरान एक दिन एक आध्यात्मिक अंतर्दर्शन में बनमालीदास ने श्रीअरविंद एवं श्रीगोविंद (श्रीकृष्ण) दोनों ही रूपों में देखा।

बनमालीदास ने अपनी इस अनुभूति के विषय में एक हिन्दी कविता लिखी और उसका अँग्रेजी अनुवाद श्रीअरविंद को भेजकर उनसे पूछा, “क्या मेरी अनुभूति सत्य है ?” श्रीअरविंद ने उत्तर दिया “हाँ।”

बनमालीदास आनंदित होकर सबसे कहा करते थे, “मैंने श्रीअरविंद से कबूल करवा लिया कि वे ही श्रीकृष्ण थे। ”

संदर्भ : श्रीअरविंद एवं श्रीमाँ की दिव्य लीला 

शेयर कीजिये

नए आलेख

प्रार्थना

(जो लोग भगवान की  सेवा  करना चाहते हैं  उनके लिये एक प्रार्थना ) तेरी जय…

% दिन पहले

आत्मा के प्रवेश द्वार

यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…

% दिन पहले

शारीरिक अव्यवस्था का सामना

जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…

% दिन पहले

दो तरह के वातावरण

आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…

% दिन पहले

जब मनुष्य अपने-आपको जान लेगा

.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…

% दिन पहले

दृढ़ और निरन्तर संकल्प पर्याप्त है

अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…

% दिन पहले