ठीक उस समय जब हर चीज़ बद-से-बदतर होती हुई मालूम होती है, उसी समय हमें श्रद्धा का परम कर्म करना चाहिये और यह जानना चाहिये कि भागवत कृपा हमें कभी निराश नहीं करेंगी ।
(रेखांकित शब्दों की व्याख्या)
मेरा मतलब है , परिणामों की परवाह किये बिना अपने आंतरिक विश्वास के साथ काम करना और बाहरी तौर पर उल्टे प्रमाणों के होते हुए भी अपनी श्रद्धा को अडिग रखना।
संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१७)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…