श्रेणियाँ श्री माँ के वचन

श्रद्धा और भरोसा

श्रद्धा भरोसे से अधिक, कहीं अधिक पूर्ण है। देखो, तुम्हें भगवान पर भरोसा है, इस अर्थ में कि तुम्हें अधिक विश्वास है कि जो कुछ उनकी ओर से आयेगा वह सदा तुम्हारी अधिकतम भलाई के लिए होगा : उनका जो भी निर्णय हो, उनकी ओर से जो भी अनुभूति आये, वे तुम्हें जिस किसी परिस्थिति में रखें, सब सदा तुम्हारे अधिक-से-अधिक भले के लिए ही होगा। यह भरोसा है। किन्तु श्रद्धा – भगवान के अस्तित्व में एक प्रकार की अडिग निश्चयता – श्रद्धा एक ऐसी वस्तु है जो सम्पूर्ण सत्ता पर अधिकार कर लेती है। यह केवल मानसिक, आन्तरात्मिक अथवा प्राणिक ही नहीं होती : वस्तुतः, श्रद्धा समूची सत्ता में होती है। श्रद्धा सीधी अनुभूति की ओर ले जाती है।

संदर्भ : प्रश्न और उत्तर (१९५४)

शेयर कीजिये

नए आलेख

आश्रम के दो वातावरण

आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिसमें…

% दिन पहले

ठोकरें क्यों ?

मनुष्य-जीवन के अधिकांश भाग की कृत्रिमता ही उसकी अनेक बुद्धमूल व्याधियों का कारण है, वह…

% दिन पहले

समुचित मनोभाव

सब कुछ माताजी पर छोड़ देना, पूर्ण रूप से उन्ही पर भरोसा रखना और उन्हें…

% दिन पहले

देवत्‍व का लक्षण

श्रीअरविंद हमसे कहते हैं कि सभी परिस्थितियों में प्रेम को विकीरत करते रहना ही देवत्व…

% दिन पहले

भगवान की इच्छा

तुम्हें बस शान्त-स्थिर और अपने पथ का अनुसरण करने में दृढ़ बनें रहना है और…

% दिन पहले

गुप्त अभिप्राय

... सामान्य व्यक्ति में ऐसी बहुत-से चीज़ें रहती हैं, जिनके बारे में वह सचेतन नहीं…

% दिन पहले