श्रद्धा भरोसे से अधिक, कहीं अधिक पूर्ण है। देखो, तुम्हें भगवान पर भरोसा है, इस अर्थ में कि तुम्हें अधिक विश्वास है कि जो कुछ उनकी ओर से आयेगा वह सदा तुम्हारी अधिकतम भलाई के लिए होगा : उनका जो भी निर्णय हो, उनकी ओर से जो भी अनुभूति आये, वे तुम्हें जिस किसी परिस्थिति में रखें, सब सदा तुम्हारे अधिक-से-अधिक भले के लिए ही होगा। यह भरोसा है। किन्तु श्रद्धा – भगवान के अस्तित्व में एक प्रकार की अडिग निश्चयता – श्रद्धा एक ऐसी वस्तु है जो सम्पूर्ण सत्ता पर अधिकार कर लेती है। यह केवल मानसिक, आन्तरात्मिक अथवा प्राणिक ही नहीं होती : वस्तुतः, श्रद्धा समूची सत्ता में होती है। श्रद्धा सीधी अनुभूति की ओर ले जाती है।
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर (१९५४)
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…
पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…