आज हमारी शिक्षा कौन – से दोषों और भ्रांतियों का शिकार है ? हम उनसे कैसे बच सकते हैं ?
१ . सफलता, आजीविका और धन को दिया जाने वाला प्रायः ऐकांतिक महत्व ।
२. ‘आत्मा’ के साथ संपर्क और सत्ता के ‘सत्य’ के विकास और उसकी अभिव्यक्ति की परम आवश्यकता पर ज़ोर देना ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-१)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…