जब तक हम वर्तमान विश्व-चेतना में निवास करते हैं तब तक यह जगत, जैसा कि गीता ने कहा है, ‘अनित्यमसुखम’ है। उससे विमुख हो केवल भगवान की ओर मुड़ने और भागवत चेतना में निवास करने पर ही हम, जगत के द्वारा भी शाश्वत भगवान को प्राप्त कर सकते हैं।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…