आश्रम में प्रायः सभी साधक एक-दो घंटे व्यायाम करते हैं। स्वर्गीय परिचंद एक विद्वान व्यक्ति थे और अध्ययन के बहुत प्रेमी थे। एक बार उन्होंने श्रीमां से कहा, “मधुर मां, सारा दिन कठिन परिश्रम करने के बाद जब में व्यायाम करता हूं तो इतना थक जाता हूं कि रात को मेरे अन्दर श्रीअरविन्द के ग्रंथों को पढ़ने की शक्ति ही नहीं रहती । क्या यह अच्छा नहीं होगा कि मैं व्यायाम न करूं?” श्रीमां ने कहा, “नहीं,तुम अपना व्यायाम जारी रखो, भले ही तुम इतने थक जाओ कि बाद में पढ़ न सको।” इससे स्पष्ट हो जाता है कि श्रीमां व्यायाम को कितना महत्व देती थीं। परीचंद प्रायः कहा करते थे कि अपनी वृद्धावस्था में उन्हें इस बात का अनुभव होता है कि उनके लिये व्यायाम करना कितना लाभदायक रहा।

संदर्भ : श्रीअरविन्द और श्रीमां की दिव्य लीला

शेयर कीजिये

नए आलेख

भगवान के दो रूप

... हमारे कहने का यह अभिप्राय है कि संग्राम और विनाश ही जीवन के अथ…

% दिन पहले

भगवान की बातें

जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…

% दिन पहले

शांति के साथ

हमारा मार्ग बहुत लम्बा है और यह अनिवार्य है कि अपने-आपसे पग-पग पर यह पूछे…

% दिन पहले

यथार्थ साधन

भौतिक जगत में, हमें जो स्थान पाना है उसके अनुसार हमारे जीवन और कार्य के…

% दिन पहले

कौन योग्य, कौन अयोग्य

‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…

% दिन पहले

सच्चा आराम

सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…

% दिन पहले