तुम्हें हमेशा यह श्रद्धा रखनी चाहिये कि निम्न प्रकृति उभरने की चाहे जितनी कोशिश करे, चाहे जितने विरोधी प्रहार हों, विजय तुम्हारी ही होगी और रूपान्तर सुनिश्चित है।
‘प्रकाश’ की विजय में दृढ़ विश्वास रखो और जड़-भौतिक के प्रतिरोधों तथा स्वयं मानव व्यक्तित्व के रूपांतर के प्रतिरोध का सामना शान्त समचित्ता के साथ करो।
भले बहुत ज़्यादा अंधकार हो – और यह जगत उससे भरा हुआ है, मनुष्य का भौतिक मन भी उससे लबालब है – फिर भी अन्ततोगत्वा सच्चे प्रकाश की एक किरण, दसगुने अंधकार पर भी विजय पा सकती है। इस पर विश्वास रखो और हमेशा इसी से चिपके रहो।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग-२)
मनुष्यों की सहायता करो, परंतु उन्हें अपनी शक्ति से वंचित कर अकिंचन न बनाओ; मनुष्यों…
अब अपनी प्राण-सत्ता के द्वार पर यह नोटिस लगा दो : 'अब यहाँ किसी मिथ्यात्व…