श्रेणियाँ श्री माँ के वचन

विवाह-प्रथा का अंत

. . . निश्चय ही शादी-ब्याह का सारा विचार ही हास्यपद है क्योंकि मैं इस चीज़ को बचकाना समझती हूँ।

जानते हो, ओरोवील में शादियाँ नहीं होगीं। अगर कोई स्त्री-पुरुष आपस में प्रेम करते हैं और एक साथ रहना चाहते हैं तो वे बिना किसी रस्म-रिवाज के ऐसा कर सकते हैं। अगर वे अलग होना चाहते हैं तो यह भी पूरी छूट के साथ कर सकते हैं। जब लोगों में परस्पर प्रेम न रहे तो भला उन्हें साथ रहने के लिए क्यों विवश किया जाये ?

अगर लोग इस विषय में मुक्त हो जायें तो बहुत-से अपराधों को रोका जा सकेगा। उन्हें एक-दुसरें से बातें छिपाना नहीं पड़ेगी या एक-दूसरे से अलग होने के लिए अपराध नहीं करने पड़ेंगे। निस्संदेह, अगर वे सचमुच आपस में प्रेम करते हों तो स्वभावतः, बिना किसी नियम के बन्धन में बंधे हमेशा साथ रहेंगे। इसलिए ये विवाह-संस्कार और अनुष्ठान इतने बचकाने लगते हैं। ओरोवील में जन्में बच्चों  का पारिवारिक नाम नहीं होगा। उनका केवल अपना नाम होगा।

संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-१)

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