जीव का सबसे अधिक विलक्षण अनुभव यह है कि जब वह दुख-क्लेश के रूप और उससे होने वाली आशंका की परवाह करना छोड़ देता है तो वह देखता है कि उसके इर्द-गिर्द कहीं दुख-क्लेश का नामोनिशान तक नहीं है। उसके बाद ही हम उन झूठे बादलों के पीछे भगवान को अपने ऊपर हँसते हुए सुनते हैं।
संदर्भ : विचार और सूत्र के प्रसंग में
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…