विभक्त सत्ता


श्रीअरविंद आश्रम की श्रीमाँ

मैं आपसे फिर से पूछता हूँ माँ, वह कौन-सी चीज़ है जो मेरी सत्ता को विभक्त करती है ?

संघर्ष है उसके बीच जो चेतना के लिए अभीप्सा करता है यानि सत्ता का ‘सात्विक’ भाग और दूसरा है सत्ता का ‘तामसिक’ भाग जो अपने ऊपर निश्चेतना का आक्रमण और शासन होने देता है, एक वह जो ऊपर की ओर धकेलता है और दूसरा वह जो नीचे की ओर खीचता हैं, अतः वह सब प्रकार के बाहरी प्रभावों के आधीन है ।

संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१६)


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