साधारण रूप से, सामान्य मनुष्य में भौतिक, शारीरिक चेतना चीजों को वैसे नहीं देखती जैसी कि वे वस्तुतः है , यह तीन कारणों से है : अज्ञान के कारण, विशिष्ट अभिरुचि के कारण, और एक स्व-अहं पूर्ण संकल्प की वजह से। जो तुम देखते हो उसे रंग देते हो, जो बात तुम्हें अप्रसन्न करती है, तुम उसे मिटा देते हो, तुम वही देखते हो जो तुम देखना चाहते हो ।
संदर्भ : माताजी के एजेंडा (भाग-१)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…