साधारण रूप से, सामान्य मनुष्य में भौतिक, शारीरिक चेतना चीजों को वैसे नहीं देखती जैसी कि वे वस्तुतः है , यह तीन कारणों से है : अज्ञान के कारण, विशिष्ट अभिरुचि के कारण, और एक स्व-अहं पूर्ण संकल्प की वजह से। जो तुम देखते हो उसे रंग देते हो, जो बात तुम्हें अप्रसन्न करती है, तुम उसे मिटा देते हो, तुम वही देखते हो जो तुम देखना चाहते हो ।
संदर्भ : माताजी के एजेंडा (भाग-१)
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...पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो…