एक बार हैदराबाद में भारी सूखा पड़ा। लोगों ने यज्ञ कराए, संत-फ़क़ीरों से सहायता ली किंतु वर्षा की एक बूँद भी नहीं गिरी। अकाल पड़ने लगा। हैदराबाद के मंत्री सर अकबर हैदरी ने शासक निज़ाम से कहा यदि वे श्रीमाँ से सहायता माँगे तो वर्षा अवश्य होगी। निज़ाम श्रीमाँ को नहीं जानते थे, अतः उन्होंने सर अकबर हैदरी को अपना प्रतिनिधि बनाकर सहायता माँगने पांडिचेरी भेजा।

सर अकबर हैदरी पांडिचेरी पहुँचे। श्रीमाँ को प्रणाम करने के बाद उन्होंने कहा, “माँ , मैं आपसे … “, किंतु उनका वाक्य पूरा होने से पूर्व ही श्रीमाँ ने कहा, “हाँ, मैं जानती हूँ। तुम्हारा कार्य हो गया है। वहाँ वर्षा हो चुकी है। चूँकि तुमने अपने निज़ाम को आश्वासन दे दिया था कि मैं वर्षा कर सकती हूँ, मुझे तुम्हारे लिए वर्षा करानी पड़ी। किंतु भविष्य में ऐसा न करना। ये सब देवताओं के कार्यक्षेत्र हैं और इनमें हस्तक्षेप करना ठीक नहीं हैं।

(यह कथा स्वर्गीय गणपतराम ने मुझे सुनाई थी)

संदर्भ : श्रीअरविंद और श्रीमाँ की दिव्य लीला 

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