एक मृत घूमते ब्रह्माण्ड में जीवित
हम यहां ऐसे ही एक आकस्मिक भूमण्डल पर नहीं आये हैं
जैसे अपनी शक्ति से परे का एक कार्य सौंप हमें छोड़ दिया हो;
तथापि इस जटिल अराजकता में जिसे दैवी भाग्य कह पुकारते हैं
और मृत्यु तथा पतन की इस कटुता के मध्य
हम अपने जीवनों पर एक वरदहस्त की सुरक्षा का अनुभव पाते हैं।
संदर्भ : सावित्री
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