एक मृत घूमते ब्रह्माण्ड में जीवित
हम यहां ऐसे ही एक आकस्मिक भूमण्डल पर नहीं आये हैं
जैसे अपनी शक्ति से परे का एक कार्य सौंप हमें छोड़ दिया हो;
तथापि इस जटिल अराजकता में जिसे दैवी भाग्य कह पुकारते हैं
और मृत्यु तथा पतन की इस कटुता के मध्य
हम अपने जीवनों पर एक वरदहस्त की सुरक्षा का अनुभव पाते हैं।
संदर्भ : सावित्री
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…