“मनुष्य जो कुछ पहले कर चुका है उसे ही हमेशा दुहराते जाना हमारा काम नहीं है, बल्कि हमें नवीन सिद्धियों और अकल्पित विजयों को प्राप्त करना है। काल, आत्मा और जगत हमें क्षेत्र के रूप में दिये गये हैं ; दृष्टि, आशा और सर्जक कल्पना हमें प्रेरणा देने के लिए हैं , संकल्प , विचार और श्रम हमारे सर्वसमर्थ साधन हैं ।

“भला वह कौन-सी-नयी चीज़ है जिसे अभी हमें प्राप्त करना है ? ‘प्रेम’, क्योंकि अब तक हमने केवल घृणा और आत्म-तृष्टि को ही पाया है; ‘ज्ञान’, क्योंकि अब तक हमने केवल भूल-भ्रांति, इंद्रियबोध और मानसिक कल्पना को ही पाया है; ‘आनंद’, क्योंकि अब तक हमनें केवल सुख-दु:ख और उदासीनता को ही पाया है; ‘शक्ति’, क्योंकि अब तक हमने केवल दुर्बलता, प्रयास और पराजित विजय को ही पाया है, ‘जीवन’, क्योंकि अब तक हमने केवल जन्म, वृद्धि और मृत्यु को ही पाया है; ‘एकता’, क्योंकि अब तक हमने केवल युद्ध और साझेदारी को ही पाया है ।

“एक शब्द में , ‘देवत्व’ ; भगवतस्वरूप में अपना पुननिर्माण । ”

संदर्भ : विचार और झाँकियाँ 

शेयर कीजिये

नए आलेख

भगवती माँ की कृपा

तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…

% दिन पहले

श्रीमाँ का कार्य

भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…

% दिन पहले

भगवान की आशा

मधुर माँ, स्त्रष्टा ने इस जगत और मानवजाति की रचना क्यों की है? क्या वह…

% दिन पहले

जीवन का उद्देश्य

अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…

% दिन पहले

दुश्मन को खदेड़ना

दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…

% दिन पहले

आलोचना की आदत

आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…

% दिन पहले