यदि अपनी भक्ति और समर्पण के पीछे तुम अपनी इच्छाओं को, अहंकार की अभिलाषाओं और प्राणों के हठों को छिपा रखोगे, अपनी सच्ची अभीप्सा के स्थान में इन चीजों को ला रखोगे या अपनी अभीप्सा में इन्हें मिला दोगे तो यह समझ लो की भग्वात्प्रसाद-शक्ति का इसलिये आवाहन करना कि वे तुम्हारा रूपांतर करें, बिल्कुल बेकार है ।
सन्दर्भ : माताजी के विषय में
शुद्धि मुक्ति की शर्त है। समस्त शुद्धीकरण एक छुटकारा है, एक उद्धार है; क्योंकि यह…
मैं मन में श्रीअरविंद के प्रकाश को कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? अगर तुम…
...पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो…