यदि अपनी भक्ति और समर्पण के पीछे तुम अपनी इच्छाओं को, अहंकार की अभिलाषाओं और प्राणों के हठों को छिपा रखोगे, अपनी सच्ची अभीप्सा के स्थान में इन चीजों को ला रखोगे या अपनी अभीप्सा में इन्हें मिला दोगे तो यह समझ लो की भग्वात्प्रसाद-शक्ति का इसलिये आवाहन करना कि वे तुम्हारा रूपांतर करें, बिल्कुल बेकार है ।
सन्दर्भ : माताजी के विषय में
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…
पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…