जो ‘सर्वोच्च है उसके साथ तुम्हारी सत्ता का सब प्रकार से एक हो जाना—यह योग है। जो अखिल है उसके साथ तुम्हारी सत्ता का सब प्रकार से एक हो जाना—यह योग है। अपनी आत्मा में तथा अपनी बुद्धि तथा हृदय के साथ और अपने सभी अंगों में मानवता में स्थित भगवान् के साथ एक हो जाना—यह योग है। समस्त प्रकृति’ तथा सभी सत्ताओं के साथ एक हो जाना—यह योग है। यह सब उस भगवान् के साथ एक होना है जो विश्वातीत है और जो अपने विश्व में है और जो उस सबमें है जिसे उसने अपनी सत्ता में सृजित किया है। क्योंकि उसी से सब कुछ आया है और उसी में सब कुछ है और वही सब और सबमें है, और क्योंकि वह तुम्हारा सर्वोच्च आत्मन् है तथा तुम अपनी आत्मा में उसके साथ एक हो और अपनी आत्मा में तुम उसी के अंश हो तथा तुम अपनी प्रकृति में उसके साथ क्रीड़ारत हो, और क्योंकि यह विश्व उसकी सत्ता में एक दृश्य है जिसमें वह तुम्हारा गुप्त स्वामी और प्रेमी और मित्र, प्रभु, पोषक तथा जो कुछ तुम हो उस सबका लक्ष्य है, इसीलिए उसके साथ एकत्व तुम्हारी सत्ता का पूर्ण स्वरूप है।

संदर्भ : श्रीअरविंद (खण्ड-१२)

शेयर कीजिये

नए आलेख

आध्यात्मिक जीवन की तैयारी

"आध्यात्मिक जीवन की तैयारी करने के लिए किस प्रारम्भिक गुण का विकास करना चाहिये?" इसे…

% दिन पहले

उदार विचार

मैंने अभी कहा था कि हम अपने बारे में बड़े उदार विचार रखते हैं और…

% दिन पहले

शुद्धि मुक्ति की शर्त है

शुद्धि मुक्ति की शर्त है। समस्त शुद्धीकरण एक छुटकारा है, एक उद्धार है; क्योंकि यह…

% दिन पहले

श्रीअरविंद का प्रकाश

मैं मन में श्रीअरविंद के प्रकाश को कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? अगर तुम…

% दिन पहले

भक्तिमार्ग का प्रथम पग

...पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो…

% दिन पहले

क्या होगा

एक परम चेतना है जो अभिव्यक्ति पर शासन करती हैं। निश्चय ही उसकी बुद्धि हमारी…

% दिन पहले