योग का मौलिक उद्देश्य

हमारी सत्ता तथा समस्त सत्ता का भागवत सत्य के साथ ऐक्य ही योग का मौलिक उद्देश्य है। मन में इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है। हमें यह याद रखना चाहिये कि हमारा योग स्वयं अतिमानस को प्राप्त करने के लिए नहीं किया जाता बल्कि भगवान् के लिए किया जाता है; हम अतिमानस की खोज इसके अपने आनन्द तथा इसकी महानता के लिए नहीं करते बल्कि भगवान् के साथ ऐक्य को निरपेक्ष तथा सम्पूर्ण बनाने के लिए, अपनी सत्ता के हर सम्भव तरीके से, इसकी उच्चतम तीव्रताओं तथा बृहत्तम विशालताओं में तथा हमारी अपनी प्रकृति को प्रत्येक पहुँच में, घुमाव में, प्रत्येक कोने और कोटरिका में इसे महसूस करने, अधिकृत करने तथा गतिशील बनाने के लिए करते हैं। यह सोचना भूल है, जैसा कि बहुत-से लोगों में ऐसा सोचने की प्रवृत्ति है, कि अतिमानसिक योग का उद्देश्य अतिमानवता की शक्तिशाली भव्यता, एक भागवत शक्ति और महानता, एक बढ़े-चढ़े वैयक्तिक व्यक्तित्व की आत्म-परिपूर्णता को पाना है। यह एक मिथ्या तथा अनर्थकारी धारणा है-अनर्थकारी क्योंकि यह हमारे राजसिक-प्राणिक मन के अहंकार, मिथ्याभिमान तथा महत्त्वाकांक्षा को बढ़ा सकती है और यह भी कि यदि इसे पार और पराजित नहीं किया गया तो यह आध्यात्मिक पतन की ओर ले जायेगी, मिथ्या क्योंकि यह एक अहंकारिक धारणा है, तथा अतिमानसिक परिवर्तन की पहली शर्त है-अहंकार से मुक्त होना।

संदर्भ : योग समन्वय 

शेयर कीजिये

नए आलेख

भगवती माँ की कृपा

तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…

% दिन पहले

श्रीमाँ का कार्य

भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…

% दिन पहले

भगवान की आशा

मधुर माँ, स्त्रष्टा ने इस जगत और मानवजाति की रचना क्यों की है? क्या वह…

% दिन पहले

जीवन का उद्देश्य

अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…

% दिन पहले

दुश्मन को खदेड़ना

दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…

% दिन पहले

आलोचना की आदत

आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…

% दिन पहले