सभी धर्म इस धारणा से आरम्भ होते हैं कि हमारे सीमित और मरणशील व्यक्तित्वों से महत्तर और उच्चतर कोई शक्ति या सत्ता है, उस शक्ति के प्रति पूजा का भाव और कर्म निवेदित होने चाहियें तथा उसके संकल्प, उसके विधान अथवा उसकी अपेक्षाओं का पालन किया जाना चाहिये।
लेकिन धर्म अपने प्रारम्भिक चरणों में इस प्रकार अवधारित, पूजित तथा आज्ञा-पालित शक्ति और आराधक के बीच एक अपरिमेय खाई पैदा कर देता है। योग अपनी चरमोत्कर्ष अवस्था में उस खाई को पाट देता है; क्योंकि योग संयुक्त करता है।

संदर्भ : योग समन्वय 

शेयर कीजिये

नए आलेख

एक प्रोत्साहन

" जिस समय हर चीज़ बुरी से अधिक बुरी अवस्था की ओर जाती हुई प्रतीत…

% दिन पहले

आश्रम के दो वातावरण

आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिसमें…

% दिन पहले

ठोकरें क्यों ?

मनुष्य-जीवन के अधिकांश भाग की कृत्रिमता ही उसकी अनेक बुद्धमूल व्याधियों का कारण है, वह…

% दिन पहले

समुचित मनोभाव

सब कुछ माताजी पर छोड़ देना, पूर्ण रूप से उन्ही पर भरोसा रखना और उन्हें…

% दिन पहले

देवत्‍व का लक्षण

श्रीअरविंद हमसे कहते हैं कि सभी परिस्थितियों में प्रेम को विकीरत करते रहना ही देवत्व…

% दिन पहले

भगवान की इच्छा

तुम्हें बस शान्त-स्थिर और अपने पथ का अनुसरण करने में दृढ़ बनें रहना है और…

% दिन पहले