अपने मन को पूरी तरह अपनी कठिनाई से मोड़ लो और पूरी तरह ऊपर से आने वाली ज्योति और शक्ति पर केंद्रित रहो और भगवान तुम्हारे शरीर के साथ जो उचित करना समझे उन्हें करने दो । अपनी भौतिक सत्ता की पूरी-पूरी ज़िम्मेदारी उनके ऊपर छोड़ दो ।
यही उपचार है ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…