बाहरी रंग-रूप से निर्णय न करो और लोग जो कहते हैं उस पर विश्वास न करो, क्योंकि ये दोनों चीज़ें भटकाने वाली हैं। लेकिन अगर तुम्हें जाना ज़रूरी मालूम होता है, तो निस्संदेह तुम जा सकते हो और बाहरी दृष्टिकोण से शायद यह अधिक बुद्धिमत्तापूर्ण भी होगा।
और फिर, यहाँ रहना आसान नहीं है। आश्रम में कोई बाहरी अनुशासन या दिखाई देने वाली परीक्षा नहीं है। लेकिन आन्तरिक परीक्षा निरंतर और कठोर होती है। यहाँ रहने-लायक होने के लिए तुम्हें अपनी अभीप्सा में बहुत सच्चा होना चाहिये ताकि तुम समस्त अंधकार को पार कर सको और मिथ्याभिमान को जीत सको।
पूर्ण समर्पण की बाहर से मांग नहीं की जाती, लेकिन जो लोग यहाँ बने रहना चाहते हैं उनके लिए यह अनिवार्य है और बहुत से चीज़ें समर्पण की सच्चाई की परीक्षा करने के लिए आती हैं । फिर भी, जो उनके लिए अभीप्सा करते हैं उनके लिए ‘कृपा’ और सहायता हमेशा मौजूद रहती हैं और उन्हें श्रद्धा-विश्वास के साथ ग्रहण किया जाये तो उनकी शक्ति असीम होती है ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-१)
तुम जिस चरित्र-दोष की बात कहते हो वह सर्वसामान्य है और मानव प्रकृति में प्रायः सर्वत्र…
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