मनुष्यों के लिए मैं उस शांति की मांग कर रहा हूं जो कभी असफल न होगी, धरती के लिए मैं अक्षत, कालातीत परमानंद की मांग कर रहा हूं, नर्क में दु:ख कष्ट पाने वाली आत्माओं के लिए मैं प्रभु के बल की खोज में और उस अज्ञात खाई को प्रभु के प्रकाश से भरने की तलाश में लगा हूं।
संदर्भ : श्रीअरविंद (खण्ड-२)
जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…
‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…
सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…