ऐसा लगता है कि तुम्हारें अन्दर पुकार उठी है और संभवतः तुम योग करने के लिए उपयुक्त हो; लेकिन योग के अनेक पथ हैं और प्रत्येक का अपना अलग उद्देश्य तथा लक्ष्य होता है। यह तो मानी हुई बात है कि सभी पथों में कामनाओं पर विजय पाने, जीवन के सामान्य सम्बन्धों से ऊपर उठ कर अनिश्चितता से चिरस्थाई निश्चिति में निवास करने को कहा जाता है। व्यक्ति अपने स्व्पन और अपनी निद्रा, भूख और प्यास इत्यादि पर भी विजय पा सकता है। लेकिन मेरे योग में ऐसा कुछ नहीं है कि तुम जीवन से अपना संबंध काट लो, अपनी सभी इंद्रियों का हनन कर डालो या उन पर संयम का लौह अंकुश लगा दो। इस योग का उद्देश्य है – इसी जीवन में भागवत ‘सत्य’ तथा उसकी ऊर्जस्वी निश्चितताओं के ‘प्रकाश’, ‘शक्ति’ तथा आनन्द’ को जीवन में उतार कर उसका रूपान्तर करना। यह योग जगत से दूर भाग कर, तपश्चर्या का नहीं, बल्कि भागवत जीवन का योग है। पहली स्थिति में तुम्हारा लक्ष्य बस समाधि में प्रवेश करके, जगत के अस्तित्व से पूरी तरह नाता तोड़ लेना होता है।

संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग-२)

 

 

शेयर कीजिये

नए आलेख

भगवती माँ की कृपा

तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…

% दिन पहले

श्रीमाँ का कार्य

भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…

% दिन पहले

भगवान की आशा

मधुर माँ, स्त्रष्टा ने इस जगत और मानवजाति की रचना क्यों की है? क्या वह…

% दिन पहले

जीवन का उद्देश्य

अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…

% दिन पहले

दुश्मन को खदेड़ना

दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…

% दिन पहले

आलोचना की आदत

आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…

% दिन पहले