(किसी की मृत्यु पर)
जो हो चुका है उसे अब तुम्हें यह मान कर बहुत शान्ति से स्वीकारना होगा कि यही भगवान् का निर्णय था, और यह कि एक जीवन से दूसरे जीवन में प्रगति करने के लिए उसकी अन्तरात्मा के लिए यही सर्वोत्तम था-यद्यपि मानव-दृष्टि से यह उत्तम न था क्योंकि वह दृष्टि केवल वर्तमान को, केवल बाहरी चीजों को ही देखती है। आध्यात्मिक जिज्ञासु के लिए मृत्यु बस जीवन के एक रूप से दूसरे रूप में जाने का मार्ग है, मृत्यु किसी की नहीं होती बस व्यक्ति प्रस्थान कर जाता है। इसे इस रूप में देखो और अपने ऊपर से प्राणिक दुःख और विछोह की सभी प्रतिक्रियाओं को झाड़ फेंको–यह दुःख उसकी आगे की यात्रा में सहायक नहीं होगा – भगवान् के मार्ग पर दृढनिश्चयी, आगे ही आगे बढ़ते चलो।।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…