मार्गदर्शक स्वयं तुम्हारें अपने अन्दर है। यदि तुम केवल ‘उसे’ पा सको और ‘उसकी’ आवाज़ सुन सको, तब तुम यह नहीं पाओगे कि लोग तुम्हारी बात नहीं सुनेंगे, क्योंकि लोगों के अन्दर एक आवाज़ उठेगी जो उन्हें सुनने के लिए बाध्य करेगी। वह आवाज़ और वह शक्ति तुम्हारें अपने अन्दर है। यदि तुम इसे अपने अन्दर महसूस करते हो, यदि तुम इसकी उपस्थिती में जीते हो, यदि यह तुम्हारा अपना का रूप ले चुकी है, तब तुम देखोगे कि तुमसे निकला एक शब्द दूसरों में प्रत्युतर की आवाज़ जगा देगा …

संदर्भ : श्रीअरविंद (खण्ड-१)

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