मानवता की समग्र पूर्णता

भागवत सत्ता की प्रकृति केवल स्वाधीनता की ही नहीं है वरन शुद्धता, परमानंद तथा पूर्णता की भी है। एक समग्र शुद्धता की जो एक ओर हमारे अंदर भागवत सत्ता के पूर्ण प्रतिबिंब को, और दूसरी ओर हमारे अंदर जीवन की प्राणवंतता के रूप में अपने सत्य और विधान के भावोद्गार को संभव बनायेगी – यह है समग्र स्वाधीनता की शर्त । इसका परिणाम है एक समग्र परमानंद, जिसमें भगवान के प्रतीकों के रूप में दृष्ट संसार के लौकिक आनंद और अलौकिक आनंद एक साथ शामिल हैं। और यह मानव अभिव्यक्ति की परिस्थितियों के अंतर्गत भगवान की एक कोटि के रूप में हमारी मानवता की समग्र पूर्णता को तैयार करती है। यह एक ऐसी पूर्णता है जो सत्ता की, प्रेम की, आनंद की, ज्ञान की क्रीडा की तथा शक्ति की व अहंकारमुक्त क्रियाशीलता के संकल्प की क्रीडा की कुछ मुक्त विश्वव्यापक्ता पर आधारित है ।

संदर्भ : श्रीअरविंद (खंड -१६)

शेयर कीजिये

नए आलेख

केवल सत्य

तुम जिस चरित्र-दोष की बात कहते हो वह सर्वसामान्य है और मानव प्रकृति में प्रायः सर्वत्र…

% दिन पहले

रूपांतर का मार्ग

भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…

% दिन पहले

सच्चा ध्यान

सच्चा ध्यान क्या है ? वह भागवत उपस्थिती पर संकल्प के साथ सक्रिय रूप से…

% दिन पहले

भगवान से दूरी ?

स्वयं मुझे यह अनुभव है कि तुम शारीरिक रूप से, अपने हाथों से काम करते…

% दिन पहले

कार्य के प्रति मनोभाव

अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…

% दिन पहले

चेतना का परिवर्तन

मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…

% दिन पहले