श्रीमाताजी सभी साधकों के चारों ओर अपना संरक्षण रखती हैं, परंतु वे यदि अपने ही कर्म या मनोभाव के कारण उस संरक्षण के घेरेसे बाहर चले जायं तो उसके अवांछनीय परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं।
सन्दर्भ : श्रीअरविन्द के पत्र (भाग-२)
जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…
‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…
सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…