आध्यात्मिक भाव पूजा, भक्ति और निवेदन के धार्मिक भाव के विपरीत नहीं है, धर्म में जो गलत है वह है मन की कट्टरता जो किसी एक सूत्र को ऐकांतिक, सत्य मान कर उससे चिपकी रहती है। तुम्हें हमेशा यह याद रखना चाहिये कि सूत्र केवल सत्य की मानसिक अभिव्यक्ति होते हैं और इस सत्य को हमेशा बहुत-से दूसरे तरीकों से भी अभिव्यक्त किया जा सकता है ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-३)
यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…
जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…
.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…
अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…