भोजन अर्पण करने का तात्पर्य

‘मातृवाणी’ में आये हुए इस वाक्य से माताजी का क्या मतलब है :

“जब तुम खाते हो तब तुम्हें यह अवश्य अनुभव करना चाहिये कि स्वयं भगवान ही तुम्हारें द्वारा खा रहे है ?”

 

इसका अर्थ है भोजन अहंकार या कामना को नहीं बल्कि भगवान को अर्पण करना जो सभी क्रियाओं के पीछे विद्यमान हैं।

संदर्भ : माताजी के विषय में 

शेयर कीजिये

नए आलेख

भावना

अगर तुम सचमुच भगवान से प्रेम करते हो तो इसे चुपचाप और शांत रहकर प्रमाणित…

% दिन पहले

तेरी नयी अभिव्यक्ति

... मैं सभी वस्तुओं में प्रवेश करती हूँ, प्रत्येक परमाणु के हृदय में निवास करते…

% दिन पहले

परिश्रम और ऊर्जा

यदि तुम घोर परिश्रम न करो तो तुम्हें ऊर्जा नहीं मिलती, क्योंकि उस स्थिति में…

% दिन पहले

दासता

बुरी चीज़ है दासता, चाहे वह परहेज की दासता हो या आवश्यकताओं की। हमारे पास…

% दिन पहले

प्रेम और स्नेह की प्यास

प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…

% दिन पहले

कुछ भी मुश्किल नहीं

उनके लिये कुछ भी मुश्किल नहीं है जो भगवान को सच्चाई के साथ पुकारते हैं…

% दिन पहले