कृपा तथा सुरक्षा हमेशा तुम्हारे साथ रहती हैं । किसी भी आन्तरिक या बाहरी कठिनाई या कष्ट को अपने ऊपर हावी मत होने दो; रक्षक ‘भागवत शक्ति’ की शरण में जाओ । अगर तुम हमेशा इसे श्रद्धा और सच्चाई के साथ करो तो तुम अपने अन्दर किसी चीज़ को खुलते हूए देखोगे जो सभी सतही विक्षुब्धताओं के बावजूद हमेशा शान्त तथा अचञ्चल बनी रहेगी ।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग-४)
जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…
‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…
सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…