श्री पवित्र आश्रम के एक महान योगी और साधक थे। श्रीमाँ को अपने ये अनन्य भक्त और शिशु बहुत प्रिय थे। जीवन के अंतिम वर्षों में पवित्र बहुत रुग्ण रहे। सिल्लू नाम की एक साधिका ने उन कठिन घड़ियों में उनकी बहुत सेवा की ।

पवित्र की मृत्यु के पश्चात श्रीमाँ ने सिल्लू के हाथ अपने हाथों में थाम कर कहा, “तुमने पवित्र की देखभाल और सेवा इतनी लगन से की इसके लिए मैं तुम्हारी कृतज्ञ हूँ।” भागवत कृतज्ञता से भरे इन शब्दों को सुनकर सिल्लू की आँखों में आँसू भर आए।

(यह कथा मुझे स्वर्गीया सिल्लू बहन ने सुनाई थी । )

संदर्भ : श्रीअरविंद एवं श्रीमाँ की दिव्य लीला 

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